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इंडिया गेट का इतिहास: शहीदों को समर्पित एक भव्य स्मारक

दिल्ली के दिल में स्थित इंडिया गेट भारत की आज़ादी, वीरता और बलिदान का प्रतीक है। यह स्मारक न केवल दिल्ली का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, बल्कि भारतीय सेना के शहीदों की अमर गाथा भी कहता है। इसे देखने हर साल लाखों लोग आते हैं, न सिर्फ इसकी सुंदरता के लिए, बल्कि इसके पीछे छिपे गहरे इतिहास और भावनाओं को महसूस करने के लिए।


🔹 इंडिया गेट का निर्माण और इतिहास

इंडिया गेट का निर्माण वर्ष 1921 में आरंभ हुआ था और इसे 10 फरवरी 1931 को औपचारिक रूप से राष्ट्र को समर्पित किया गया। इसका डिज़ाइन प्रसिद्ध ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियंस ने किया था। यह स्मारक उन 70,000 भारतीय सैनिकों की याद में बनाया गया था जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध (1914–1918) और अफगान युद्ध में ब्रिटिश सेना की ओर से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी।

इस विशाल द्वार की ऊँचाई लगभग 42 मीटर है और यह पीले और लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है। इसके अंदर और आसपास शहीदों के नाम खुदे हुए हैं, जो इस स्थान को और भी भावुक और श्रद्धा से भरा बनाते हैं।


🔹 अमर जवान ज्योति: शहीदों को श्रद्धांजलि

1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद, इंडिया गेट के नीचे अमर जवान ज्योति की स्थापना की गई। यह एक शाश्वत ज्वाला है जो उन अनगिनत भारतीय सैनिकों की याद में प्रज्वलित रहती है जिन्होंने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण त्याग दिए। यहाँ एक राइफल के ऊपर सैनिक की टोपी की आकृति है, जो वीरता का प्रतीक है।

हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड के पहले, देश के प्रधानमंत्री और अन्य गणमान्य व्यक्ति यहाँ आकर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।


🔹 आज का इंडिया गेट

आज का इंडिया गेट केवल एक स्मारक नहीं, बल्कि एक भावनात्मक स्थल बन चुका है। दिन हो या रात, यह स्थान पर्यटकों, स्थानीय निवासियों और बच्चों से भरा रहता है। शाम के समय इसकी रोशनी में नहाई हुई भव्यता मन मोह लेती है।

इसके आसपास के लॉन लोगों को पिकनिक और सैर-सपाटे का आनंद लेने का अवसर देते हैं। वहीं, पास में स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक (National War Memorial) ने भी देशभक्ति का यह अनुभव और भी गहन बना दिया है।


🔹 निष्कर्ष

इंडिया गेट केवल एक स्थापत्य चमत्कार नहीं है, यह उन लाखों भारतीयों का सम्मान है जिन्होंने अपने देश के लिए जान न्योछावर की। यह स्थान हमें यह याद दिलाता है कि देशभक्ति केवल किताबों में नहीं होती, बल्कि उसे महसूस भी किया जा सकता है – और इंडिया गेट उसका सजीव उदाहरण है।

यदि आप कभी दिल्ली जाएँ, तो इंडिया गेट पर जरूर रुकें – वहाँ की हवा में देश के वीरों की शौर्यगाथा आज भी गूंजती है।


जय हिन्द! 

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