रूमी दरवाज़ा का निर्माण अकाल राहत के रूप में हुआ था
1784 में नवाब असफ़-उद-दौला ने एक भयंकर अकाल के दौरान लोगों को रोज़गार देने के लिए रूमी दरवाज़े का निर्माण कराया।
इसकी प्रेरणा तुर्की के वास्तुशिल्प से ली गई थी
रूमी दरवाज़ा की डिज़ाइन इस्तांबुल के एक दरवाज़े से प्रेरित है। इसलिए इसे ‘रूमी’ (रोम/तुर्की से जुड़ा) कहा गया।
यह लगभग 60 फीट ऊँचा है
रूमी दरवाज़ा की ऊँचाई लगभग 60 फीट (करीब 18 मीटर) है, जो इसे उस युग की इंजीनियरिंग का अजूबा बनाती है।
रात के समय इसमें दिया जाता था रौशनी का खास इंतज़ाम
पुराने समय में रूमी दरवाज़े के शीर्ष पर एक विशाल दीपक जलाया जाता था जो पूरे इलाके को रौशन करता था।
यह सिर्फ एक दरवाज़ा नहीं, एक प्रतीक है
रूमी दरवाज़ा लखनऊ की तहज़ीब, वास्तुकला और नवाबी संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। यह शहर की पहचान बन चुका है।
इस दरवाज़े में लकड़ी या लोहा नहीं, सिर्फ ईंट और चूने का उपयोग हुआ है
पूरा दरवाज़ा बिना लोहे के केवल ईंट और चूना पत्थर से तैयार किया गया है, जो उस समय की शिल्पकला का प्रमाण है।
इसे ‘तुर्की गेट’ भी कहा जाता है
विदेशी पर्यटक और कई इतिहासकार रूमी दरवाज़े को ‘Turkish Gate’ के नाम से भी जानते हैं।
यह एक स्वतंत्र संरचना है
रूमी दरवाज़ा किसी दीवार से जुड़ा हुआ नहीं है। यह एक स्वतंत्र और स्वतंत्र खड़ी संरचना है, जो अपने आप में अद्भुत है।
यहाँ फिल्मों की शूटिंग भी हुई है
रूमी दरवाज़ा कई बॉलीवुड फिल्मों जैसे जोधा अकबर, डेड इश्किया, बुलेट राजा आदि में देखा गया है।
यह लखनऊ के सबसे ज़्यादा फोटो खींचे जाने वाले स्थानों में से एक है
सोशल मीडिया पर लखनऊ की जो भी पहचान साझा होती है, उसमें रूमी दरवाज़ा लगभग हमेशा शामिल होता है।
परिचय:
लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरों में रूमी दरवाज़ा एक ऐसा नाम है जिसे नवाबी शान, स्थापत्य कला और सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। इस भव्य दरवाज़े को देखने हर साल हज़ारों सैलानी आते हैं, लेकिन बहुत कम लोग इसके बारे में गहराई से जानते हैं। आइए जानते हैं रूमी दरवाज़ा से जुड़ी 10 रोचक और कम ज्ञात बातें।
निष्कर्ष:
रूमी दरवाज़ा सिर्फ एक स्थापत्य नहीं, बल्कि लखनऊ की आत्मा है। इसके पीछे छिपी कहानियाँ, इतिहास और संस्कृति इसे और भी खास बनाते हैं। अगली बार जब आप लखनऊ जाएँ, तो इस दरवाज़े को सिर्फ देखें नहीं, उसकी कहानी को भी महसूस करें।
