परिचय: लाल किला – सिर्फ एक इमारत नहीं, एक गवाही है
दिल्ली के हृदय में स्थित लाल किला न केवल मुग़ल साम्राज्य की भव्यता का प्रतीक है, बल्कि यह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की सजीव गवाही भी देता है। यह सिर्फ ईंट-पत्थर से बनी एक ऐतिहासिक इमारत नहीं, बल्कि हर भारतीय के गर्व और आत्मसम्मान की आवाज़ है। इसकी दीवारों ने जहां कभी शाही समारोहों की चमक देखी, वहीं आज़ादी की लड़ाई में दिए गए बलिदानों की गूंज भी सुनी।
हर साल 15 अगस्त को जब प्रधानमंत्री इसकी प्राचीर से तिरंगा फहराते हैं, तब यह स्मरण दिलाता है कि यह वही किला है, जहां से गुलामी से मुक्ति की घोषणा हुई थी। आइए, जानें लाल किले की उन कहानियों को जो हमारे देश के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हैं।
इतिहास की पन्नों से – लाल किले की उत्पत्ति
लाल किले का निर्माण मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने 1638 में शुरू कराया और 1648 तक यह बनकर तैयार हुआ। शाहजहाँ ने अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली स्थानांतरित की और यमुना नदी के किनारे इस भव्य दुर्ग का निर्माण करवाया। यह किला ‘शाहजहानाबाद’ नामक शहर का केंद्र था।
लाल बलुआ पत्थर से निर्मित यह किला न केवल सैन्य दृष्टिकोण से मज़बूत था, बल्कि इसमें शाही जीवन की सभी सुविधाएँ भी थीं। इसके अंदर मौजूद दीवाने-आम, दीवाने-खास, रंग महल, नहर-ए-बहिश्त, मोती मस्जिद और हमाम जैसे निर्माण इसकी समृद्ध कला और वास्तुकला को दर्शाते हैं।
मुग़ल साम्राज्य से अंग्रेज़ी शासन तक
शाहजहाँ के बाद औरंगज़ेब समेत अन्य मुग़ल शासकों ने भी इस किले से शासन किया। लेकिन धीरे-धीरे मुग़ल साम्राज्य का पतन शुरू हुआ और 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने किले को अपने नियंत्रण में ले लिया।
1857 की क्रांति के दौरान जब अंतिम मुग़ल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र ने स्वतंत्रता सेनानियों के पक्ष में खड़ा होने की कोशिश की, तब अंग्रेज़ों ने उन्हें बंदी बना लिया और यहीं से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) निर्वासित कर दिया। यह घटना लाल किले के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, जिससे यह स्वतंत्रता संग्राम की पहचान बन गया।
आज़ाद हिंद फौज और लाल किले का मुकदमा
1945-46 में लाल किला एक बार फिर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र बना। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज के तीन अधिकारियों – कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों और मेजर शाहनवाज़ खान पर ब्रिटिश सरकार ने यहीं लाल किले में मुकदमा चलाया।
इस ऐतिहासिक मुकदमे ने पूरे भारत को आंदोलित कर दिया। लाखों लोग सड़कों पर उतर आए और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ ज़बरदस्त जनाक्रोश फूटा। यह मुकदमा भारत की स्वतंत्रता के अंतिम चरण का प्रतीक बना और अंग्रेज़ी शासन की नींव हिल गई।
15 अगस्त 1947: इतिहास का स्वर्णिम दिन
15 अगस्त 1947, वह दिन जब भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्ति मिली। इसी दिन भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराया और “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” भाषण के साथ एक नए युग की शुरुआत की।
तब से लेकर आज तक हर स्वतंत्रता दिवस पर भारत के प्रधानमंत्री लाल किले से तिरंगा फहराते हैं और राष्ट्र को संबोधित करते हैं। यह परंपरा हर भारतीय के मन में लाल किले को राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक बना चुकी है।
लाल किले की दीवारों में बसी कहानियाँ
इस किले की दीवारें केवल ईंटों की नहीं, बल्कि कहानियों की बनी हैं। कभी यहां बादशाहों की शाही सवारी निकलती थी, तो कभी कवि दरबार सजते थे। यहीं संगीत, शायरी, कला और संस्कृति का संगम होता था।
पर जब गुलामी का समय आया, तो इन्हीं दीवारों ने सैनिकों की तलवारों की झंकार, बंदूक़ों की आवाज़, और सेनानियों के बलिदानों की गूंज भी सुनी। हर कोना, हर दीवार, हर दरवाज़ा आज भी इतिहास का मूक साक्षी है।
आज का लाल किला – विरासत और आकर्षण
आज लाल किला एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया जा चुका है। प्रतिवर्ष लाखों लोग इसे देखने आते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इसका संरक्षण किया जा रहा है और इसकी भव्यता को बनाए रखने का निरंतर प्रयास जारी है।
रात्रि में यहां लाइट एंड साउंड शो का आयोजन होता है, जो इतिहास को जीवंत रूप में दर्शकों के सामने प्रस्तुत करता है। इस शो के माध्यम से लोग लाल किले की कहानी को दृष्टि और ध्वनि के माध्यम से अनुभव करते हैं।
निष्कर्ष: एक प्रेरणा, एक चेतना
लाल किला सिर्फ एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं है, बल्कि यह एक चेतना है – हमारे स्वतंत्रता संग्राम की, हमारे आत्मगौरव की, और हमारे संविधान के मूल्यों की। यह हमें याद दिलाता है कि आज की आज़ादी किन-किन बलिदानों से मिली है।
इसलिए, जब भी आप लाल किले को देखें या उसके बारे में पढ़ें, तो उसे केवल एक इमारत न समझें। वह हमारे देश की आत्मा है, जिसने मुग़ल शाही, अंग्रेज़ी अत्याचार और भारतीय संघर्ष सब कुछ देखा है। उसकी दीवारों में भारत की गूंज है – आज़ादी की गूंज।